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प्यार का बंधन

#दैनिक कहानी प्रतियोगिता के लिए



फूलों का तारों का सबका कहना है,

एक हजारों में मेरी बहना है,

सारी उमर हमें संग रहना है ....

पड़ोस वाले घर से आती गीत की आवाज़ सुनकर श्रद्धा को मन में बेचैनी सी होने लगी, आँखों के सामने बचपन के दिन सजीव हो उठे। और आँखों से आंसू सम्हाले नही गए तो सबसे नज़र बचाकर अंदर किचन में गई और बड़ी सफाई से आंसुओं को साड़ी के पल्लू में जज़्ब कर लिया। हर साल रक्षाबंधन पर उसका यही हाल रहता था ।

तभी भैया का फोन आ गया, अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए फोन उठाया।
"हेलो भैया,कैसे हो?"
"हैप्पी रक्षाबंधन गुड़िया,मैं ठीक हूँ,तू अच्छी है न?"–भैया की आवाज में भी उदासी थी।"तेरी बहुत याद आ रही।"
"हाँ भैया, हैप्पी रक्षाबंधन, भैया मुझे भी आपकी बहुत बहुत याद आ रही।"कहते हुए श्रद्धा को रोना आ गया।
"अरे,रोते नहीं पगली,मम्मी बोलती हैं न त्योहार के दिन रोना नही चाहिए।"
"हाँ भैया नही रोना चाहिए पर मेरा त्योहार तो बस नाम का है।"गहरी सांस छोड़ते हुए उसने कहा,"पता भैया मेरा भी मन करता कि मैं अपने हाथों से तुम्हें राखी बांधू, पर क्या करूं, बच्चों की पढ़ाई, मम्मी पापाजी( सास ससुरजी) की तबियत का खयाल रखना होता है ।"
"हाँ गुड़िया, मुझे पता है न इसीलिए तो तुझे राखी पर आने के लिए ज्यादा बोलता नही, क्यूंकि जानता हूँ कि ज्यादा बोलूंगा तो तुझे दुख होगा कि भैया कितने प्यार से बुला रहे और मै नही जा पा रही।"
"हाँ भैया, कभीकभी मेरा मन करता कि तुम्हें बुला लूँ पर यही सोचकर नही बोलती कि तुम पर मम्मी पापा की जिम्मेदारी है, पापाजी की तबियत भी तो ठीक नही रहती, वहाँ की सब जवाबदारी तुम बिना तनाव के निभा सको इसलिए मैं तुम पर कोई दबाव नही डालना चाहती कि राखी बंधवाने जाना ही है। फिर आठ घण्टे की दूरी है ,जाने आने में सोलह घण्टे लगेंगे ।जानती हूँ तुम्हारे लिए समय निकालना कितना मुश्किल है।यही सोच चुप रह जाती हूँ।"
फिर खुद को सामान्य करते हुए बोली ,"पर कोई बात नही , मेरी राखी तो मिल ही गई होंगी, बुआजी की बेटी से बंधवा लेना और दो गुलाबजामुन भी खा लेना, तुम्हे पसंद है न,और मैं भी यहाँ खा लूंगी।" जब श्रद्धा ने गुलाबजामुन की बात की तो दोनों भाई बहन आंखों में आंसू लिए साथ मे हँस पड़े।

"मेरी छोटी सी,प्यारी सी समझदार बहना,भगवान करे हर जन्म में तू ही मेरी बहन बनें।"बहन की आंखें बड़े भाई के स्नेह भरी बातों से सजल हो रही थीं।

दोनों ने पुनः एकदुसरे को रक्षाबंधन की शुभकामनाएं दीं और अपने अपने घर परिवार की जिम्मदरियाँ अच्छे से निभाने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से सम्बल देते हुए अपना भी ध्यान रखने को कहकर फोन रख दिया, दूर रहकर भी हमेशा प्यार भरे बंधन निबाहने का संकल्प लिये।

और एक बार फिर श्रध्दा अपने प्यारे भैया की याद में भीगी पलकों को सम्हाले किचन में जाकर गर्मागर्म पूरियां तलने की तैयारी करने लगी।


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4 Comments

Dilawar Singh

20-Jan-2024 11:26 AM

अद्भुत बहुत ही सुंदर सृजन👌👌

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shweta soni

12-Aug-2022 09:11 AM

Nice

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Madhumita

11-Aug-2022 04:37 PM

बहुत खूब

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